कानपुर।। मार्च 16, 2013: देश के ठेकेदारों द्वारा हाल ही में एक नया बिल पेश किया गया है। इस दुष्कर्म रोधी बिल में सबसे रोचक बात यह है कि सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को घटा कर 18 से 16 वर्ष कर दिया गया है। लगातार बढ रहे बलात्कार के मामलों को देखते हुए यू.पी.ए.-2 द्वारा बलात्कार के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के सम्बन्ध में कदम उठाने की आशा थी, लेकिन दोषियों को सजा दिलाने के बजाय बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी।
संसद मे पेश हुए बिल में सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 वर्ष करना एैसा ही है कि मानो किसी रेखा को छोटा करने के लिए उससे भी बड़ी रेखा खींच दी गई हो। उम्र कम करना कितना समझदारी भरा फैसला है, ये तो वक्त ही बतायेगा, परन्तु इससे जो समस्याएँ सामने आयेगी वो समाज को हिला कर रख सकती है।
अब जब 16 वर्ष कि आयु में शारीरिक संबंध बनाने कि इज़ाजत दी जा रही है तो यह निश्चित है कि लोग शारीरिक संबंध बनायेगे। यदि संबंध बनाने में सावधानी न बरती गई तो हो सकता है कि लड़की गर्भ धारण कर लें। अब मुख्य सामाजिक समस्या शुरू होती है। भारतीय कानून के मुताबिक 18 वर्ष से पहले शादी करना बाल विवाह की श्रेणी में आता है जो कि समाजिक बुराई एवं अपराध है। और भ्रूण हत्या भी कानून अपराध है। ऐसे में बिन ब्याही माँ बनना ही लड़की के पास एक मात्र उपाय बन कर रह जाता है। जिसे भारतीय समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है।
सरकार द्वारा शादी की उम्र 18 वर्ष तय करने के पीछे कारण है कि इससे कम उम्र में लड़की कर शारीरिक विकास पूरा नहीं हो पाता है, और माँ बनने कि स्थिति में लड़की के स्वाथ्य को खतरा होता है। अब प्रश्न उठता है कि यदि 18 वर्ष तक शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता तो सेक्स के लिए उम्र को घटाना जरूरी क्यों हो गया।
भारत कि विचाराधारा पश्चिमी देशों से प्रभावित है और भारत खुद को आधुनिक एवं विकसित दिखाने कि होड़ में पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुसरण कर रहा है। अपनी संस्कृति और सभ्यता के आधार पर ’विश्व गुरू’ के नाम से प्रसिद्ध भारत यदि इस अन्धानुसरण से बाज न आया तो वो दिन दूर नहीं होगा जब यहाँ मर्दस डे तो मनाया जायेगा पर फादर्श डे पर बच्चों को समझ नहीं आयेगा कि वे किसे विश करें।
सौरभ बाजपेई
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