Sunday, March 31, 2013

कांग्रेस प्रचारक काटजू




पिछले कुछ दिनों से भारतीय प्रेस परिसद के अध्यक्ष मार्कडेय काटजू किसी न किसी बयान से मीडिया कि नजर में बनें रहते है। कुछ दिन पहले तक संजय दत्त की माफी के लिए हवा चलाने वाले काटजू एक बार फिर अपने बयान से सभी की नजरों में आ गये है। एक निजी चैनल से बातचीत के दौरान काटजू ने कहा कि 90 प्रतिशत भारतीय भेड़ चाल चलती है एवं र्सिर्फ जाति एवं धर्म के आधार पर वोट डालती है। इसके अलावा काटजू ने कांग्रेज को धर्मनिरपेक्षता का सार्टिफिकेट देते हुए कहा कि वे सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ है और पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष है, इसीलिए लोग मुझे कांग्रेसी कहते है। काटजू के बड़बोलेपन कि हद तो तब हो गई जब उन्होने सभी राजनैतिक दलों को कोसते हुए कहा कि मैं किसी को वोट दे कर अपना वोट खराब नहीं करूँगा, वैसे भी एक वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता।
भारतीय प्रेस परिसद के अध्यक्ष पद पर आसीन काटजू यह बोलने से पहले शायद अपने पद कि महत्व एवं मीडिया की ताकत को भूल गये थे। बहुत पुरानी कहावत है कि बूँद- बूँद से सागर बनता है और लोकतन्त्र में हर वोट का अपना महत्व होता है। इसके साथ ही काटजू को याद रखना चाहिए था कि मीडिया एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो लोगों कि विचारधारा को तेजी से बदलता है। थोडे दिन पहले कि ही बात है जब काटजू ने संजय दत्त को माफ करने के लिए कहा था और इसके बाद ही एक बड़ा समूह संजय कि माफी के पक्ष में आ गया। अब सवाल यह है कि क्या काटजू जिस परिषद के अध्यक्ष है उन्हे उसी की ताकत नही पता या धर्मनिरपेक्ष ’कांग्रसी’ काटजू को दिग्विजय सिंह की तरह बेवजह बोलने कि आदत हो गई है।
अब सवाल यह उठता है चुनाव के समय सरकार करोड़ों रुपये खर्चे करके जनता के वोट डालने के लिए प्रेरित करती है एवं यह बताया जाता है कि वोट डालना हर भारतीय का संवैधानिक हक है एवं वोट किसे कर रहे है यह गुप्त रखना चाहिए। एैसे में सार्वजनिक रूप से वोट न डालने कि बात कर कर रहे एवं खुले तौर पर अपना कांग्रेस प्रेम जाहिर करने वाले काटजू के खिलाफ क्या कोई सख्त कदम उठाया जायेगा। इसके आलावा काटजू कहते है कि भारतीय जाति-धर्म के आधार पर वोट डालते है लेकिन काटजू के बायान को पढ कर लगता है कि जिन लोगों को भेड़ - चाल की तरह वोट करने का तगमा काटजू दे रहे है उन भेडो के मुखिया खुद काटजू है। काटजु के अनुसार वे धर्म निरपेक्ष पार्टी को ही वोट देगे। अब धर्म निरपेक्षता कि परिभाषा भी लगे हाथ दे देते तो बेहतर होता। अब तो यही समझ आता है कि उनकी धर्मनिरपेक्ष पार्टी विकास करे या देश का बेड़ा गर्ग कर दे काटजु कस इससे कोई सरोकार नही है।
इस पूरे प्रकरण पर काटजू को अपनी सफाई पेश करना चाहिए तथा सरकार द्वारा काटजू पर अप्रत्यक्ष रूप से जनता को वोट न डालने के लिए प्रेरित करने का आरोप लगाते हुए वाँछनीय कार्यवाही करनी चाहिए, जिससे कि भविष्य में ऐसे बेतुके बयानबाज अपना मुँह खोलने से पहले खुद के दिमाग कि जाँच कर लें।

                                 सौरभ बाजपेई

Saturday, March 16, 2013

भारतीय संस्कृति को चुनौती देता कानून।


कानपुर।। मार्च 16, 2013: देश के ठेकेदारों द्वारा हाल ही में एक नया बिल पेश किया गया है। इस दुष्कर्म रोधी बिल में सबसे रोचक बात यह है कि सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र को घटा कर 18 से 16 वर्ष कर दिया गया है। लगातार बढ रहे बलात्कार के मामलों को देखते हुए यू.पी.ए.-2 द्वारा बलात्कार के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के सम्बन्ध में कदम उठाने की आशा थी, लेकिन दोषियों को सजा दिलाने के बजाय बलात्कार की परिभाषा ही बदल दी।
संसद मे पेश हुए बिल में सहमति से संबंध बनाने की उम्र 16 वर्ष करना एैसा ही है कि मानो किसी रेखा को छोटा करने के लिए उससे भी बड़ी रेखा खींच दी गई हो। उम्र कम करना कितना समझदारी भरा फैसला है, ये तो वक्त ही बतायेगा, परन्तु इससे जो समस्याएँ सामने आयेगी वो समाज को हिला कर रख सकती है।
अब जब 16 वर्ष कि आयु में शारीरिक संबंध बनाने कि इज़ाजत दी जा रही है तो यह निश्चित है कि लोग शारीरिक संबंध बनायेगे। यदि संबंध बनाने में सावधानी न बरती गई तो हो सकता है कि लड़की गर्भ धारण कर लें। अब मुख्य सामाजिक समस्या शुरू होती है। भारतीय कानून के मुताबिक 18 वर्ष से पहले शादी करना बाल विवाह की श्रेणी में आता है जो कि समाजिक बुराई एवं अपराध है। और भ्रूण हत्या भी कानून अपराध है। ऐसे   में बिन ब्याही माँ बनना ही लड़की के पास एक मात्र उपाय बन कर रह जाता है। जिसे भारतीय समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है।
सरकार द्वारा शादी की उम्र 18 वर्ष तय करने के पीछे कारण है कि इससे कम उम्र में लड़की कर शारीरिक विकास पूरा नहीं हो पाता है, और माँ बनने कि स्थिति में लड़की के स्वाथ्य को खतरा होता है। अब प्रश्न उठता है कि यदि 18 वर्ष तक शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो पाता तो सेक्स के लिए उम्र को घटाना जरूरी क्यों हो गया।
भारत कि विचाराधारा पश्चिमी देशों से प्रभावित है और भारत खुद को आधुनिक एवं विकसित दिखाने कि होड़ में पाश्चात्य सभ्यता का अन्धानुसरण कर रहा है। अपनी संस्कृति और सभ्यता के आधार पर ’विश्व गुरू’ के नाम से प्रसिद्ध भारत यदि इस अन्धानुसरण से बाज न आया तो वो दिन दूर नहीं होगा जब यहाँ मर्दस डे तो मनाया जायेगा पर फादर्श डे पर बच्चों को समझ नहीं आयेगा कि वे किसे विश करें।

सौरभ बाजपेई

Thursday, March 7, 2013

अब 12 से होगी विश्वविद्यालय परीक्षा
















कानपुर, 7 मार्च। शिक्षक संगठनों के परिक्षा बहिस्कार के कारण 8 मार्च से होने वाली संस्थागत परीक्षा 11 मार्च तक के लिए टाल दी गई है।
आज हुई विश्वविद्यालय की ओर से आपातकालीन परिक्षा समिति के बैठक में लिए गये निर्णय में 8 मार्च से 11 मार्च तक की परीक्षा को टाल दिया गया है और 12 मार्च से परीक्षा यथावत शुरू होगी। विश्वविद्यालय प्रशाशन के बताया कि नया परीक्षा कार्यक्रम विश्वविद्यालय की वेबसाइट से देखा जा सकता है।

Wednesday, March 6, 2013

गँाव गोद लेकर करेगें विकास कार्य


कानपुर, 6 मार्च। छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के छात्रों ने पढाई के साथ दूसरो की जिम्मेंदारी उठाने का संकल्प लिया है। जिसके लिए वे सभी राष्ट्रीय सेवा योजना नामक संस्था के द्वारा गाँवों में विकास कार्य करवायेगें। इसमें छात्रों के साथ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और कुलपति अशोक कुमार का पूरा सहयोग मिल रहा है।
संस्था के कार्यकर्ताओं ने कल्याणपुर के बरासाइतपुर नामक गाँव में गरीब बच्चों को कपड़े बाँट कर सुधार कि योजना शुरू कि है। वस्त्र वितरण के दौरान उपस्थित कुलपति अशोक कुमार ने वहाँ के प्राथमिक स्कूल को अपनी तरफ से निशुल्क अखबार मुहैया कराने का वादा किया।
वस्त्र वितरण करते कुलपति

संस्था कि ओर से आयोजित कार्यशाला के समापन में आज क्षेत्र के विधायक एवं मुख्य अतिथि सतीश निगम नें छात्रों के इस प्रयास की सराहना कि एवं कहा कि युवा वर्ग ही देश की संस्कृति को सुरक्षित एवं सुदृण बना सकता है।
इस मौके पर कुलपति ने कहा कि छात्रों का यह प्रयास सराहनीस है एवं समाज कल्याण के ऐसे कामों के लिए उनकी तरफ से सदैव अनुमति रहेगी, साथ ही विश्वविद्यालय सामुदायिक सेवा नामक एक नये एन.जी.ओं के गढन की अनुमति दी।
इस मौके पर प्रोफेसर सुधाँशू राय, देवबक्श, एस.के. कटियार के साथ विवके, शुभम, अनुराधा, श्रद्धा, अरुन, लोकेश, अमन आदि छात्र मौजूद रहे।


प्लेसमेंट के बाद होगी पार्टी








कानपुर, 6 मार्च। कानुपर विश्वविद्यालय में 16 अप्रैल तीन दिवसीय प्लेसमेंट मेला का आयोजन किसा जायेगा। इस वर्ष के कार्यक्रम की जानकारी देते हुए प्लेसमेंट सेल के हेड सुधाँशू राय ने बताया कि विश्वविद्यालय में पढाये जाने वाले सभी पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए इस वर्ष 20 से 25 कंपनीयों को बुलाया जायेगा।
इस वर्ष तीन दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन यूथ समिट नाम से काउसिंलिंग का आयोजन होगा जिसमें विषय विशेषज्ञो द्वारा छात्रों को सफलता के मंत्र दिये जायेगे। इस समिट में विश्वविद्यालय से जुडे सभी कॉलेज केे छात्र भाग ले सकेगे। 17 अप्रैल को छात्रों का साक्षात्कार एवं चयन प्रकिया होगी।
चयनित छात्रों कि विदाई को यादगार बनाने के लिए 18 अप्रैल को सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं रॉक नाइट का आयोजन होगा,जिसमें हनी सिंह को आमंत्रित किया जायेगा।
कार्यक्रम के आयोजन में प्रो0 सुधाँशू राय के साथ विकास, रवि, अंकुर, विवके आदि छात्रों का सहयोग रहेगा।

Friday, February 15, 2013

कानपुर विश्वविद्यालय में सम्मानित हुए संजीबा



कानपुर।। फरवरी,15 2013: छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में मसहूर रंगकर्मी संजीवा को पाल-बच्चा पुरस्कार से सम्मानित किया गया एवं उनके चित्रों की प्रदशर्नी का आयोजन किया गया। 
विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मान समारोह में कुलपति सहित विभिन्न हस्तियाँ शामिल हुई। प्रो0 डॉ0 वी.एन. पाल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में भ्रस्टाचार के खिलाफ इस पुरस्कार का वितरण किया, जिसमें कई लोगों को नामांकित किया गया था परन्तु प्रख्यात रंगकर्मी को तेरह हजार एक सौ इकत्तीस रूपय की इनामी राशी सेे सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के दौरान डॉ0 वी.एन. पाल ने कहा कि इस पुरस्कार में पाल शब्द का आशय पालक और बच्चा का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो संसार कि बुराइयों से बचा हुआ हों। 
इस कार्यक्रम में बोलते हुए संजीबा ने अपनी कविता “ये देश अंग्रेजों तुम्ही चलाओं“ सुनाई। साथ ही कहा कि काटूनिस्ट असीम के साथ जो हुआ वो कला की हत्या थी ऐसा लोकतंत्र में नही होना चाहिए। साथ ही कहा कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग जारी रखेगें।    

सौरभ वाजपेई

Thursday, February 14, 2013

मेहंदीपुर बालाजी धाम- एक ऐसा स्थान जहाँ बड़े से बड़ा नास्तिक , आस्तिक बन जाता है

लेख-अमन अग्रवाल “मारवाड़ी”

श्री मेंहदीपुर बालाजी धाम। आगरा- जयपुर राष्ट्रीय मार्ग पर आगरा से लगभग 145 किमी एवं जयपुर से लगभग   100 किमी दूर यह दूवस्थान लोक आस्था का ऐसा केंद्र हो गया है, यहां जाति धर्म व समप्रदाय की सभी   वर्जनाएं एक माला में पिरोई नजर आती हैं। यहां सभी नतमस्तक हैं। राजस्थान के करौली एवं दौसा जिलों   की दो पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह तीन देवों की प्रधानता वाला ऐसा देवस्थल है यहां से हर भक्त   झोली भर कर जाता है. जिसने जो मांगा उसे वह मिलना सुनिष्चित है। यह दुनिया का अकेला ऐसा स्थान है   जहां भूत-प्रेत और जिन्नौं का इलाज होता है । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि बालाजी की   प्रधानता वाला यह स्थान अतशप्त आत्माओं का बसेरा है। उनकी मुक्ति का धाम है। 
ऐसी मान्यता है कि यहां श्री बालाजी महाराज के हजारों गण (बालाजी की शरणागत अतशप्त आत्माऐँ ) हैं जो यहां श्री बालाजी महाराज के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रहे हैं।
आगरा-जयपुर हाइवे से बाई तरफ लगभग नौ किमी दूर स्थित इस देव स्थान पर पहली बार आने वाला व्यक्ति यहां उटपटांग हरकत करते, मुंडी हिलाकर विलाप करते लोगों को देखकर एक बार तो शरीर कंपन महसूस करने लगेगा।
 करौली और दौसा की सुरभ्य घाटियों में स्थित होने के कारण यह देवस्थान घाटा वाले बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां के चमत्कारों के आगे अपने आप नतमस्तक हो जाते हैं. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहां स्थित श्री बालाजी महाराज प्रेतराज सरकार भरवजी और कोतवाल की प्रतिमाएं प्रकृति द्वारा पर्वत शिलाओँ में उकेरी गई आकृतियां हैं। इन देवस्थान के प्रार्दुभाव को लेकर जो जनश्रुति आम प्रचलित है। उसमें कहा गया है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यह देवस्थान प्रकाश में आया। बताते हैं कि यहां के महंत परिवार के पूर्वजों को स्वयं बालाजी ने दर्शन देकर अपनी सेवा का आदेश दिया। इसके बाद ही यह देवस्थान जनसमान्य की नजर में आया। आज भी बालीजी की सेवा इसी परिवार के सदस्य करते हैं।लेकिन वही जो ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हैं। मंदिर का विकास स्वर्गिय महंत गणेशपुरी जी के कार्यकाल में शुरू हुआ और वर्तमान महंत श्री किशोर पुरी जी के कार्यकाल में इसने व्यापक स्वरूप धारण किया है। 
बालाजी धाम के प्रादुर्भाव का एक प्रसंग बालकर हनुमान द्वारा सुर्य को देंद समझकर मुंह में दबा लेने और सुर्य को बंधन सुक्त कराने के लिए इंद्र द्वारा ब्रज प्रहार करने से संबंधित है। जिसमें कहा गया है कि बज्र प्रहार से हुए घर्षण से यहां की पहाड़ियों में आकृतियां उभर आयीं. यहीं तीन मूर्तिया मुक्य मंदिर में सुशोभित हैं। यह भी कहा जाता है कि हनुमानजी की माता अंजनी ने यहां की पहाड़ियों में लंबा समय गुजारा था। बहरहाल यह देव स्थान कापी पौराणिक व ऐतिहासिक है और इससे सभी सहमत हैं। सरकार और प्रशासन की भी इस देव स्थान में पूरी आस्था है।बालाजी महाराज के मंदिर की दिनचर्या प्रतिदिन सुबह पांच बजे मुख्यद्वार खुलने के साथ शुरू होती है। मंदिर की धुलाई-सफाई और फिर नंबर आता है पूजा-अर्चना का। सबसे पहली श्री बालाजी महाराज का गंगाजल से अभिषेक होता है। अभिषेक के लिए गंगाजल हरिद्वार से आता है। अभिषेक वैदिक रीति से मंत्रोचारण के साथ होता है। पांच पुजारी इसमें लगते हैं।
मंदिर प्रांगण में पूरे दिन करीब 25 ब्राह्मणों की ड्यूटी रहती है, लेकिन श्री बालाजी महाराज के श्रृंगार में मात्र पुजारी ही शामिल होते हैं। गंगाजल से स्नान कराने के बाद चोले का नम्बर आता है। चोला श्री बालाजी महाराज के श्रृंगार का मुख्य हिस्सा है। यह सप्ताह में तीन बार सोमवा, बुधवार एवं शुक्रवार को चढ़ाया जाता है। अभिषेक के बाद चमेली का तेल श्री बालाजी के पूरे शरीर पर लगाया जाता है। इसके बाद सिंदूर होता है जो आम दुकानों पर नहीं मिलता। सिंदूर को ही सामान्य भाषा में चोला कहते हैं। इसके बाद चांदी के वर्कों से बालाजी को सजाया जाता है। चांदी के वर्क के बाद सोने के वर्क लगाए जाते हैं। इसके बाद चंदन, केसर,केवड़ा और इत्र के मिश्रण से तैयार तिलक लगाया जाता है। फिर बारी आती है, आभूषण और गुलाब की माला आदि की। पूरे श्रृंगार में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है। इसके बाद भोग और फिर सुबह की आरती। श्रृंगार के समय मंदिर के पट बंद रहते हैं। लेकिन आरती का समय होते-होते मंदिर के बाहर भक्तों का जनसूमह एकत्रित हो जाता है। जैसे ही आरती शुरू होती है। श्री बालाजी महाराज के जहकारों, घंटों और घड़ियालों की आवाजों से पूरी मेंहदीपुर घाटी गुंज उठती है।

   आरती लगभग 40 मिनट तक चलती है। आरती सम्पन्न होते ही भक्त और भगवान का मिलन प्ररम्भ हो जाता है। जो रात्रि लगभग नौ बजे तक अवरत चलता रहता है। केवल दोपहर एवं रात्री भोग के समय आधा-आधा घंटे के लिए श्री बालाजी महाराज के पट बंद होते हैं। वह भी पर्दे डालकर। सुबह आरती के बाद पहले बालाजी का बाल भोग लगता है जिसमें बेसन की बूंदी होती है। फिर राजभोगका बोग लगता है। यह मंदिर में स्थित बालाजी रसोई में ही तैयार किया जाता है। इसमें चूरमा मेवा, मिष्ठान आदि होता है। बोग बाद में दर्शनार्थी भक्तों में वितरित किया जाता है। भक्तों तो दिया जाने वाला बोग थैलियों में पैक होता है। जबकि अभिषेक का गंगाजल भक्तों को चरणामृत के रूप में वितरित किया जाता है। दोपहर के समय श्री बालाजी महाराज का विशेष भोग लगाया जाता है। इसे दोपहर का भोजन भी कहा जा सकता है। बालाजी के बोग से पहले उनके प्रभु श्रीराम और माता सीता अर्थात मुक्य मंदिर के सामने सड़क पार बने श्री सीताराम मंदिर में बोग लगता है, तत्पश्चात बालाजी का भोग लगता है। बालाजी के साथ श्रई गणेश, श्री प्रेतराज सरकार, बेरव जी कोतबाल दीवान आदि का बी भोग लगता है। इस भोग के दौरान आधा घंटे के लिए दर्शन बंद रहते हैं। शाम पांच बजे श्रई बालाजी का पुन: अभिषेक होता है। इसमें लघबग एक घंटे का समय लगता है। तत्पश्चात नंबर आता है शाम की आरती का। सबसे अंत में शयन भोग लगता है। यह चौथा भोग होता है। दूध,मेवा का यह भोग भी बाद में प्रसाद के रूप में दर्शानार्थी भक्तों को बांटा जाता है।
घाटा मेंहदीपुर वाले बाबा के मंदिर में उमड़ने वाली भक्तों की भीड़ का जहां तक सवाल है। अब यह बारहमासी है। अर्थात प्रतिदिन यहां भक्तों की भीड़ रहती है। देश के सुदूर क्षेत्रों से यहां दर्शानार्थी भक्त आते हैं। लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहां विशेष भीड़ होती ह। आस-पास के क्षेत्रों में श्री बालाजी के दर्शन आसपास के लोगों के लिए ठी वैसी ही दिनचर्या का अंग है जैसा कि सुबह-शाम का भोजन। डेढ़ से दो घंटे तक लाईन में लगने के बाद भक्त और भगवान का मिलन आम बात है, मगर इस मिलन के बाद दर्शनार्थी भक्तों के चेहरों पर जो संतोष भाव होता है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
कोर्ट कचहरी की तरह होती है सुनवाई
श्री मेंहदीपुर बालाजी धाम में विघ्न-बाधाओं को दूर करने का ढ़ंग एकदम कोर्ट-कचहरी जैसा है। इसमें मुक्य न्यायाधीस की कुर्सी पर स्वयं घाटा वाले बाबा शोबायमान हैं। जबकि श्री प्रेतराज सरकार, श्री भैरव जी और कोतवाल मुख्य न्यायाधीश के आदेसों को क्रियान्वयन करने वाले पेशागार, एवं कानून के रखवाले कलेक्टर और कप्तान हैं। लेकिन इस दरबार में कोई वकील नहीं हैं। सब कुछ मरीज और न्यायाधीश के बीच का मामला है। मरीज खुद बालाजी के दरबार में अर्जी लगाता है। खुद ही दरखास्त लगाता है। बालाजी मरीज की ब्याधा के हिसाब से उसे प्रेतराज सरकार, भैरवजी और कोतवा को अग्रसारित करते हैं इसके बाद स्वत: पेशी होती है। यह पेशी एक दिन,11,21,41 दिन साल दो साल बीमारी की गंभीरता और मरीज के परिजनों के समर्पण भाव से समय सीमा का निर्धारण होता है।