लेख-अमन अग्रवाल “मारवाड़ी”
श्री मेंहदीपुर बालाजी धाम। आगरा- जयपुर राष्ट्रीय मार्ग पर आगरा से लगभग 145 किमी एवं जयपुर से लगभग 100 किमी दूर यह दूवस्थान लोक आस्था का ऐसा केंद्र हो गया है, यहां जाति धर्म व समप्रदाय की सभी वर्जनाएं एक माला में पिरोई नजर आती हैं। यहां सभी नतमस्तक हैं। राजस्थान के करौली एवं दौसा जिलों की दो पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह तीन देवों की प्रधानता वाला ऐसा देवस्थल है यहां से हर भक्त झोली भर कर जाता है. जिसने जो मांगा उसे वह मिलना सुनिष्चित है। यह दुनिया का अकेला ऐसा स्थान है जहां भूत-प्रेत और जिन्नौं का इलाज होता है । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि बालाजी की प्रधानता वाला यह स्थान अतशप्त आत्माओं का बसेरा है। उनकी मुक्ति का धाम है।
ऐसी मान्यता है कि यहां श्री बालाजी महाराज के हजारों गण (बालाजी की शरणागत अतशप्त आत्माऐँ ) हैं जो यहां श्री बालाजी महाराज के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रहे हैं।
आगरा-जयपुर हाइवे से बाई तरफ लगभग नौ किमी दूर स्थित इस देव स्थान पर पहली बार आने वाला व्यक्ति यहां उटपटांग हरकत करते, मुंडी हिलाकर विलाप करते लोगों को देखकर एक बार तो शरीर कंपन महसूस करने लगेगा।
करौली और दौसा की सुरभ्य घाटियों में स्थित होने के कारण यह देवस्थान घाटा वाले बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां के चमत्कारों के आगे अपने आप नतमस्तक हो जाते हैं. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यहां स्थित श्री बालाजी महाराज प्रेतराज सरकार भरवजी और कोतवाल की प्रतिमाएं प्रकृति द्वारा पर्वत शिलाओँ में उकेरी गई आकृतियां हैं। इन देवस्थान के प्रार्दुभाव को लेकर जो जनश्रुति आम प्रचलित है। उसमें कहा गया है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व यह देवस्थान प्रकाश में आया। बताते हैं कि यहां के महंत परिवार के पूर्वजों को स्वयं बालाजी ने दर्शन देकर अपनी सेवा का आदेश दिया। इसके बाद ही यह देवस्थान जनसमान्य की नजर में आया। आज भी बालीजी की सेवा इसी परिवार के सदस्य करते हैं।लेकिन वही जो ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हैं। मंदिर का विकास स्वर्गिय महंत गणेशपुरी जी के कार्यकाल में शुरू हुआ और वर्तमान महंत श्री किशोर पुरी जी के कार्यकाल में इसने व्यापक स्वरूप धारण किया है।
बालाजी धाम के प्रादुर्भाव का एक प्रसंग बालकर हनुमान द्वारा सुर्य को देंद समझकर मुंह में दबा लेने और सुर्य को बंधन सुक्त कराने के लिए इंद्र द्वारा ब्रज प्रहार करने से संबंधित है। जिसमें कहा गया है कि बज्र प्रहार से हुए घर्षण से यहां की पहाड़ियों में आकृतियां उभर आयीं. यहीं तीन मूर्तिया मुक्य मंदिर में सुशोभित हैं। यह भी कहा जाता है कि हनुमानजी की माता अंजनी ने यहां की पहाड़ियों में लंबा समय गुजारा था। बहरहाल यह देव स्थान कापी पौराणिक व ऐतिहासिक है और इससे सभी सहमत हैं। सरकार और प्रशासन की भी इस देव स्थान में पूरी आस्था है।बालाजी महाराज के मंदिर की दिनचर्या प्रतिदिन सुबह पांच बजे मुख्यद्वार खुलने के साथ शुरू होती है। मंदिर की धुलाई-सफाई और फिर नंबर आता है पूजा-अर्चना का। सबसे पहली श्री बालाजी महाराज का गंगाजल से अभिषेक होता है। अभिषेक के लिए गंगाजल हरिद्वार से आता है। अभिषेक वैदिक रीति से मंत्रोचारण के साथ होता है। पांच पुजारी इसमें लगते हैं।
मंदिर प्रांगण में पूरे दिन करीब 25 ब्राह्मणों की ड्यूटी रहती है, लेकिन श्री बालाजी महाराज के श्रृंगार में मात्र पुजारी ही शामिल होते हैं। गंगाजल से स्नान कराने के बाद चोले का नम्बर आता है। चोला श्री बालाजी महाराज के श्रृंगार का मुख्य हिस्सा है। यह सप्ताह में तीन बार सोमवा, बुधवार एवं शुक्रवार को चढ़ाया जाता है। अभिषेक के बाद चमेली का तेल श्री बालाजी के पूरे शरीर पर लगाया जाता है। इसके बाद सिंदूर होता है जो आम दुकानों पर नहीं मिलता। सिंदूर को ही सामान्य भाषा में चोला कहते हैं। इसके बाद चांदी के वर्कों से बालाजी को सजाया जाता है। चांदी के वर्क के बाद सोने के वर्क लगाए जाते हैं। इसके बाद चंदन, केसर,केवड़ा और इत्र के मिश्रण से तैयार तिलक लगाया जाता है। फिर बारी आती है, आभूषण और गुलाब की माला आदि की। पूरे श्रृंगार में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है। इसके बाद भोग और फिर सुबह की आरती। श्रृंगार के समय मंदिर के पट बंद रहते हैं। लेकिन आरती का समय होते-होते मंदिर के बाहर भक्तों का जनसूमह एकत्रित हो जाता है। जैसे ही आरती शुरू होती है। श्री बालाजी महाराज के जहकारों, घंटों और घड़ियालों की आवाजों से पूरी मेंहदीपुर घाटी गुंज उठती है।
आरती लगभग 40 मिनट तक चलती है। आरती सम्पन्न होते ही भक्त और भगवान का मिलन प्ररम्भ हो जाता है। जो रात्रि लगभग नौ बजे तक अवरत चलता रहता है। केवल दोपहर एवं रात्री भोग के समय आधा-आधा घंटे के लिए श्री बालाजी महाराज के पट बंद होते हैं। वह भी पर्दे डालकर। सुबह आरती के बाद पहले बालाजी का बाल भोग लगता है जिसमें बेसन की बूंदी होती है। फिर राजभोगका बोग लगता है। यह मंदिर में स्थित बालाजी रसोई में ही तैयार किया जाता है। इसमें चूरमा मेवा, मिष्ठान आदि होता है। बोग बाद में दर्शनार्थी भक्तों में वितरित किया जाता है। भक्तों तो दिया जाने वाला बोग थैलियों में पैक होता है। जबकि अभिषेक का गंगाजल भक्तों को चरणामृत के रूप में वितरित किया जाता है। दोपहर के समय श्री बालाजी महाराज का विशेष भोग लगाया जाता है। इसे दोपहर का भोजन भी कहा जा सकता है। बालाजी के बोग से पहले उनके प्रभु श्रीराम और माता सीता अर्थात मुक्य मंदिर के सामने सड़क पार बने श्री सीताराम मंदिर में बोग लगता है, तत्पश्चात बालाजी का भोग लगता है। बालाजी के साथ श्रई गणेश, श्री प्रेतराज सरकार, बेरव जी कोतबाल दीवान आदि का बी भोग लगता है। इस भोग के दौरान आधा घंटे के लिए दर्शन बंद रहते हैं। शाम पांच बजे श्रई बालाजी का पुन: अभिषेक होता है। इसमें लघबग एक घंटे का समय लगता है। तत्पश्चात नंबर आता है शाम की आरती का। सबसे अंत में शयन भोग लगता है। यह चौथा भोग होता है। दूध,मेवा का यह भोग भी बाद में प्रसाद के रूप में दर्शानार्थी भक्तों को बांटा जाता है।
घाटा मेंहदीपुर वाले बाबा के मंदिर में उमड़ने वाली भक्तों की भीड़ का जहां तक सवाल है। अब यह बारहमासी है। अर्थात प्रतिदिन यहां भक्तों की भीड़ रहती है। देश के सुदूर क्षेत्रों से यहां दर्शानार्थी भक्त आते हैं। लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहां विशेष भीड़ होती ह। आस-पास के क्षेत्रों में श्री बालाजी के दर्शन आसपास के लोगों के लिए ठी वैसी ही दिनचर्या का अंग है जैसा कि सुबह-शाम का भोजन। डेढ़ से दो घंटे तक लाईन में लगने के बाद भक्त और भगवान का मिलन आम बात है, मगर इस मिलन के बाद दर्शनार्थी भक्तों के चेहरों पर जो संतोष भाव होता है उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
कोर्ट कचहरी की तरह होती है सुनवाई
श्री मेंहदीपुर बालाजी धाम में विघ्न-बाधाओं को दूर करने का ढ़ंग एकदम कोर्ट-कचहरी जैसा है। इसमें मुक्य न्यायाधीस की कुर्सी पर स्वयं घाटा वाले बाबा शोबायमान हैं। जबकि श्री प्रेतराज सरकार, श्री भैरव जी और कोतवाल मुख्य न्यायाधीश के आदेसों को क्रियान्वयन करने वाले पेशागार, एवं कानून के रखवाले कलेक्टर और कप्तान हैं। लेकिन इस दरबार में कोई वकील नहीं हैं। सब कुछ मरीज और न्यायाधीश के बीच का मामला है। मरीज खुद बालाजी के दरबार में अर्जी लगाता है। खुद ही दरखास्त लगाता है। बालाजी मरीज की ब्याधा के हिसाब से उसे प्रेतराज सरकार, भैरवजी और कोतवा को अग्रसारित करते हैं इसके बाद स्वत: पेशी होती है। यह पेशी एक दिन,11,21,41 दिन साल दो साल बीमारी की गंभीरता और मरीज के परिजनों के समर्पण भाव से समय सीमा का निर्धारण होता है।